रैगिंग पर लगाम
लगाने के लिए सरकार और कानून पूरी तरह से सख्त है फिर भी रैगिंग थमने का नाम नही
लेती, लिहाजा इसका शिकार मासूम और निर्दोष छात्र
होते हैं।
रैगिंग की शुरुआत कब हुई या कैसे हुई इसका जिक्र इतिहास के पन्नों मे भी नहीं है। देखा जाए तो रैगिंग सीनियर छात्रों द्वारा अपने जूनियर छात्रों से या संस्थान परिसर में आये नये छात्रों से परिचय लेने का तरीका है। रैगिंग सीनियर छात्र इसलिए लेते हैं ताकि उनके जूनियर छात्र उनकी इज्जत करें साथ ही शिष्टाचार के माहौल मे रहें। पर क्या वास्तव मे ऐसा होता है? इस प्रश्न का एक ही जवाब है– “नहीं”। वर्तमान परिदृश्य मे रैगिंग की परिभाषा पूरी तरह से बदल चुकी है। अब रैगिंग का मतलब है जूनियर छात्रों पर सीनियर छात्रों की दादागिरी, जूनियर छात्रों पर वर्चस्व एवं अभद्र व्यवहार।
रैगिंग की शुरुआत कब हुई या कैसे हुई इसका जिक्र इतिहास के पन्नों मे भी नहीं है। देखा जाए तो रैगिंग सीनियर छात्रों द्वारा अपने जूनियर छात्रों से या संस्थान परिसर में आये नये छात्रों से परिचय लेने का तरीका है। रैगिंग सीनियर छात्र इसलिए लेते हैं ताकि उनके जूनियर छात्र उनकी इज्जत करें साथ ही शिष्टाचार के माहौल मे रहें। पर क्या वास्तव मे ऐसा होता है? इस प्रश्न का एक ही जवाब है– “नहीं”। वर्तमान परिदृश्य मे रैगिंग की परिभाषा पूरी तरह से बदल चुकी है। अब रैगिंग का मतलब है जूनियर छात्रों पर सीनियर छात्रों की दादागिरी, जूनियर छात्रों पर वर्चस्व एवं अभद्र व्यवहार।
रैगिंग भले ही
सीनियर छात्रों के लिए समय पास करने का तरीका या मौज मस्ती का ज़रिया हो, लेकिन रैगिंग के हैवानियत को रैगिंग से पीड़ित छात्र से जाकर पूछिये कि
उसके जेहन में कितना डर और बेचैनी है। सच कहा जाए तो वाकई में यह एक भयावह मजाक
होता है।
खैर उच्च
शिक्षण संस्थानों मे रैगिंग एक आम बात हो गई है, पर क्या मासूम और छोटे बच्चों के स्कूलो मे भी रैगिंग हो सकती है? अगर हम ताजा घटनाचक्र पर नजर डालें तो बिहार के सहकारिता मंत्री के पुत्र
आदर्श का मामला सामने आता है। आदर्श एक मासूस और अवयस्क छात्र है जिसकी रैगिंग
मध्यप्रदेश के एक प्रतिष्ठित स्कूल मे हुआ। रैगिंग इस कदर हुई कि मंत्री पुत्र
आदर्श अपनी जान गंवाने के लिए कोशिश कर बैठा। अब सवाल यह उठता है कि इतने बड़े
प्रतिष्ठित संस्थान में इस हाईप्रोफईल बच्चे की रैगिंग कैसे हुई? कहां था हमारा सख्त कानून और स्कूल प्रशासन। वैसे मामला जो भी हो लेकिन सच
यह है कि यह रैगिंग हाईप्रोफाईल छात्र का था जिस कारण यह खबर मीडिया से लेकर
सियासत तक छाई रही लेकिन अगर ऐसी घटना किसी छोटे और निर्धन परिवार के छात्र के साथ
होता तो क्या यह मामला हम तक या आप तक पहूँच पाता?
शायद नही, क्योंकि स्कूल प्रशासन अपनी प्रतिष्ठा को बनाये
रखने के लिये इस मामले को नया रूप देकर या कुछ बहाना बनाकर अलग हो जाता ।
चलिए हम आप को
कुछ जमीनी हकीकत से रुबरु कराते है, रैगिंग का भय देखते हुए
कई छात्र और छात्रायें बड़े शिक्षण संस्थानो मे नामांकन कराने से हिचकिचाते हैं,
क्या उनका अधिकार नहीं है कि बड़े शिक्षण संस्थानो मे पढ़ें?
या फिर उनका अधिकार नहीं है कि संस्थान परिसर मे खुल कर रहें?
अगर कानून की बात की जाये तो रैगिंग को लेकर अखिल भारतीय तकनीकी
शिक्षा परिषद ने सारे तकनीकी महाविद्यालयों के साथ-साथ चिकित्सा महाविद्यालयों में
भी महाविद्यालय प्रशासन को इस प्रकार की घटना को रोकने के लिये दिशा निर्देश जारी
किए, सर्वोच्च न्यायालय ने भी सन् 2009 मे रैगिंग कानून को
लेकर नियमावली बनाई । इतना ही नहीं बल्कि यूजीसी भी रैगिंग को रोकने के लिये पूरी
तरह से सख्त है तथा अपनी बेबसाइट पर भी एंटी रैगिंग संबंधित सूचना एवं हेल्पलाईन
नंबर जारी किया । लेकिन फिर भी चिंता का विषय यह है कि रैगिंग समाप्त क्यों नही हो
रही है?
जरा सोचिये उस
पीड़ित छात्र के बारे में जो इस रैगिंग से गुजर चुका है, या
फिर जरा सोचिये उन परिवारों के बारे मे जो रैगिंग के कारण अपने बेटों-बेटियों को
खो चुके हैं।
बेमिसाल... ▐▐▐
ReplyDeleteरैगिंग को लेकर बेमिसाल या मेरे विचार को लेकर ...
Deleteआपकी छोटी सी उम्मीद को 21 तोपों की सलामी.... ☻
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